व्रत-त्यौहार लेबल के अंतर्गत आज जानिए देवी दुर्गा के द्वितीय स्वरुप ब्रह्मचारिणी के बारे में। (विकीपीडिया से साभार)
नवरात्र पर्व के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है। साधक इस दिन अपने
मन को माँ के चरणों में लगाते हैं। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण
करने वाली। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली।
ब्रह्मचारिणी : मां दुर्गा का दूसरा स्वरूप
ब्रह्मचारिणी : मां दुर्गा का दूसरा स्वरूप
नवरात्रि में दुर्गा पूजा के अवसर पर बहुत ही
विधि-विधान से माता दुर्गा के नौ रूपों की पूजा-उपासना की जाती है। आइए जानते हैं दूसरी
देवी ब्रह्मचारिणी के बारे में :-
भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के
लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इस देवी को तपश्चारिणी अर्थात्
ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया।
मांदुर्गा की नवशक्ति का दूसरा स्वरूप
ब्रह्मचारिणी का है। यहां ब्रह्म का अर्थ तपस्या से है। मां दुर्गा का यह स्वरूप
भक्तों और सिद्धों को अनंत फल देने वाला है। इनकी उपासना से तप, त्याग, वैराग्य,
सदाचार और संयम
की वृद्धि होती है। ब्रह्मचारिणी का अर्थ तप की चारिणी यानी तप का आचरण करने वाली।
देवी का यह रूप पूर्ण ज्योतिर्मय और अत्यंत भव्य है। इस देवी के दाएं हाथ में जप
की माला है और बाएं हाथ में यह कमण्डल धारण किए हैं।
पूर्वजन्म में इस देवी ने हिमालय के घर
पुत्री रूप में जन्म लिया था और नारदजी के उपदेश से भगवान शंकर को पति रूप में
प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी
अर्थात् ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया। एक हजार वर्ष तक इन्होंने केवल
फल-फूल खाकर बिताए और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया।
कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखे और खुले आकाश के
नीचे वर्षा और धूप के घोर कष्ट सहे। तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाए
और भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। इसके बाद तो उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी
छोड़ दिए। कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं। पत्तों को
खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा नाम पड़ गया।
कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर एकदम क्षीण
हो गया। देवता,
ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताया, सराहना की और कहा -हे देवी आज तक किसी ने इस
तरह की कठोर तपस्या नहीं की। यह तुम्हीं से ही संभव थी। तुम्हारी मनोकामना
परिपूर्ण होगी और भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे। अब
तपस्या छोड़कर घर लौट जाओ। जल्द ही तुम्हारे पिता तुम्हें बुलाने आ रहे हैं।
मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से सर्वसिद्धि
प्राप्त होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन देवी के इसी स्वरूप की उपासना की जाती
है। इस देवी की कथा का सार यह है कि जीवन के कठिन संघर्षों में भी मन विचलित नहीं
होना चाहिए।
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू। देवी
प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥
-विकीपीडिया से साभार
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