ब्लॉग जगत के महानुभावों को मेरा सादर नमन,
मैं dj (दिव्या जोशी) अपने ब्लॉग्स के माध्यम से आपके सन्मुख कुछ रचनाएँ प्रदर्शित कर चुकी हूँ और कुछ लिखने का प्रयास जारी है। ब्लॉग जगत में कदम रखने का अनुभव मेरे लिए एकदम नया है। पर जब से ब्लॉगिंग शुरू की है, सच मानिये स्वयं को नए जोश,उमंग और स्फूर्ति से भरा महसूस करने लगी हूँ।साहित्य का कोई विशेष ज्ञान नहीं रखती मैं, मगर कागज़ कलम से नाता बहुत पुराना है। लेखन से आत्मिक जुड़ाव है. लेखन ने हमेशा मुझे परिपक्व और परिपक्व बनाने का कार्य किया है। बाल्य काल (कक्षा -7) में पहली कविता लिखी थी। बाद में कुछ लेख और कविताएँ ,जो प्रथम पुरस्कृत भी हुईं। विद्यालय में अनेकों बार संचालन लिखने व करने का सौभाग्य मिला। इस बीच कभी किसी के जन्मदिवस ,प्रमोशन इत्यादि पर लिखना जारी रहा। बाद में लेखन छूट सा गया। लेकिन पढ़ना बदस्तूर जारी रहा। परन्तु शादी के पश्चात तो लेखन-वाचन लगभग बंद सा हो गया था। पर्सनल डायरी के अलावा इतने दिनों कुछ भी रचनात्मक लिख नहीं पाई। कारणों का जिक्र यहाँ आवश्यक नहीं।
ख़ैर सोशल मीडिया मुझे कभी आकर्षित नहीं कर पाया। मगर अभी कुछ समय से ब्लॉग दनिया को जानने की असीम इच्छा जागृत हुई और मौका भी मिल गया। जानती तो पहले भी थी,पर इतना नहीं।विशेषकर जबसे हिंदी ब्लॉगिंग के बारे में जाना, तो इसके मोह में पड़ने से,मैं भी खुद को रोक नहीं पाई। लिखे बिना अब चैन नहीं मिल पाता है । एक जुनून सा उत्पन्न हो गया है। इसिलिए ब्लॉगिंग का दुःसाहस कर पा रही हूँ।
ईश्वर की कृपा से मेरे अभिभावक भी लेखन का हुनर रखते हैं, तो ये हुनर वंशानुगत ही समझिए। ईश्वर की अनुकम्पा से कक्षा 8 तक की शिक्षा जिस विद्यालय में संपन्न हुई,वहाँ हमारी हिंदी शिक्षिका परम आदरणीया श्रीमती सुनीता काले जी (न जाने इस समय वे कहाँ हैं) हिंदी भाषा की प्रबुद्ध ज्ञाता थीं। मेरी वर्तन शुद्धि का श्रेय उन्हीं को जाता है। उन्हें आज ह्रदय से नमन करते हुए धन्यवाद देना चाहती हूँ। माध्यमिक शिक्षा ही शिक्षण काल की धुरी उसकी नींव होती है। बस उन्ही की कृपा से आपको मेरे लेख, कविताओं आदि में वर्तनी की अशुद्धियाँ बहुत कम देखने को मिलेगी।अगर कहीं मिली भी, तो वो तकनीकि खामी की वजह से हो सकती है और अगर ऐसा कहीं आपको नज़र आए तो मार्गदर्शन अवश्य करे। क्योंकि वर्तन अशुद्धियाँ मेरे बर्दाश्त के बाहर की चीज़ है। साहित्य-संगीत में मेरी असीम रूचि है। ये दोनों ही मनुष्य को परिपूर्ण बनाते हैं।
इसी साहित्य प्रेम की बदौलत दो ब्लॉग लेकर आपके समक्ष उपस्थित हूँ। एक लेखनी मेरी भी और नारी का नारी को नारी के लिए। जहाँ पहले ब्लॉग में स्वरचित कविता,कहानियों से लेकर जो कुछ भी मेरी लेखनी लिखवाती है, उन सब का उल्लेख करूँगी। वहीँ दूसरे ब्लॉग में नारी से जुड़े विभिन्न पहलुओं, स्वास्थय,सौंदर्य,तीज-त्यौहार की जानकारी के साथ ही नारी के विभिन्न रूपों पर मेरी स्वरचित कविताओं,कहानियों इत्यादि का समावेश करना चाहूँगी।आप महानुभावों जितना ज्ञान,इतने प्रखर और सुन्दर विचार, इतना विशाल शब्द भण्डार तो नहीं है मेरे पास, पर आपके मार्गदर्शन से दिनों दिन सुधार करूंगी इसका वादा करती हूँ।बस अपने क़ीमती वक़्त का किंचित मात्र हिस्सा मुझे देकर मार्गदर्शन ज़रूर कीजियेगा। आपकी ताउम्र आभारी रहूँगी।
आप सब से वस्तुतः यहाँ अनेक लाभों की मंशा से जुडी हूँ। एक तो, लेखन मेरी आत्मशुद्धि करके मुझे आत्मसंतुष्टि देता है। दूसरा, आप सबके बीच रहकर मुझ मूढ़मति में भी साहित्यिक ज्ञान का संचार हो जाएगा। और एक महत्वपूर्ण कारण कि मेरे मस्तिष्क में विचारों की त्सुनामी आती रहती है।व्यक्त न करूँ तो कहीं इन विचारों में मैं ही न बह जाऊँ, ये भी डर बना रहता है।
बस आप सभी के मार्गदर्शन से स्वयं का ज्ञानवर्धन कर पाऊँ यही अभिलाषा है और इसके लिए आपका सहयोग अपेक्षित है।
मैं dj (दिव्या जोशी) अपने ब्लॉग्स के माध्यम से आपके सन्मुख कुछ रचनाएँ प्रदर्शित कर चुकी हूँ और कुछ लिखने का प्रयास जारी है। ब्लॉग जगत में कदम रखने का अनुभव मेरे लिए एकदम नया है। पर जब से ब्लॉगिंग शुरू की है, सच मानिये स्वयं को नए जोश,उमंग और स्फूर्ति से भरा महसूस करने लगी हूँ।साहित्य का कोई विशेष ज्ञान नहीं रखती मैं, मगर कागज़ कलम से नाता बहुत पुराना है। लेखन से आत्मिक जुड़ाव है. लेखन ने हमेशा मुझे परिपक्व और परिपक्व बनाने का कार्य किया है। बाल्य काल (कक्षा -7) में पहली कविता लिखी थी। बाद में कुछ लेख और कविताएँ ,जो प्रथम पुरस्कृत भी हुईं। विद्यालय में अनेकों बार संचालन लिखने व करने का सौभाग्य मिला। इस बीच कभी किसी के जन्मदिवस ,प्रमोशन इत्यादि पर लिखना जारी रहा। बाद में लेखन छूट सा गया। लेकिन पढ़ना बदस्तूर जारी रहा। परन्तु शादी के पश्चात तो लेखन-वाचन लगभग बंद सा हो गया था। पर्सनल डायरी के अलावा इतने दिनों कुछ भी रचनात्मक लिख नहीं पाई। कारणों का जिक्र यहाँ आवश्यक नहीं।
ख़ैर सोशल मीडिया मुझे कभी आकर्षित नहीं कर पाया। मगर अभी कुछ समय से ब्लॉग दनिया को जानने की असीम इच्छा जागृत हुई और मौका भी मिल गया। जानती तो पहले भी थी,पर इतना नहीं।विशेषकर जबसे हिंदी ब्लॉगिंग के बारे में जाना, तो इसके मोह में पड़ने से,मैं भी खुद को रोक नहीं पाई। लिखे बिना अब चैन नहीं मिल पाता है । एक जुनून सा उत्पन्न हो गया है। इसिलिए ब्लॉगिंग का दुःसाहस कर पा रही हूँ।
ईश्वर की कृपा से मेरे अभिभावक भी लेखन का हुनर रखते हैं, तो ये हुनर वंशानुगत ही समझिए। ईश्वर की अनुकम्पा से कक्षा 8 तक की शिक्षा जिस विद्यालय में संपन्न हुई,वहाँ हमारी हिंदी शिक्षिका परम आदरणीया श्रीमती सुनीता काले जी (न जाने इस समय वे कहाँ हैं) हिंदी भाषा की प्रबुद्ध ज्ञाता थीं। मेरी वर्तन शुद्धि का श्रेय उन्हीं को जाता है। उन्हें आज ह्रदय से नमन करते हुए धन्यवाद देना चाहती हूँ। माध्यमिक शिक्षा ही शिक्षण काल की धुरी उसकी नींव होती है। बस उन्ही की कृपा से आपको मेरे लेख, कविताओं आदि में वर्तनी की अशुद्धियाँ बहुत कम देखने को मिलेगी।अगर कहीं मिली भी, तो वो तकनीकि खामी की वजह से हो सकती है और अगर ऐसा कहीं आपको नज़र आए तो मार्गदर्शन अवश्य करे। क्योंकि वर्तन अशुद्धियाँ मेरे बर्दाश्त के बाहर की चीज़ है। साहित्य-संगीत में मेरी असीम रूचि है। ये दोनों ही मनुष्य को परिपूर्ण बनाते हैं।
इसी साहित्य प्रेम की बदौलत दो ब्लॉग लेकर आपके समक्ष उपस्थित हूँ। एक लेखनी मेरी भी और नारी का नारी को नारी के लिए। जहाँ पहले ब्लॉग में स्वरचित कविता,कहानियों से लेकर जो कुछ भी मेरी लेखनी लिखवाती है, उन सब का उल्लेख करूँगी। वहीँ दूसरे ब्लॉग में नारी से जुड़े विभिन्न पहलुओं, स्वास्थय,सौंदर्य,तीज-त्यौहार की जानकारी के साथ ही नारी के विभिन्न रूपों पर मेरी स्वरचित कविताओं,कहानियों इत्यादि का समावेश करना चाहूँगी।आप महानुभावों जितना ज्ञान,इतने प्रखर और सुन्दर विचार, इतना विशाल शब्द भण्डार तो नहीं है मेरे पास, पर आपके मार्गदर्शन से दिनों दिन सुधार करूंगी इसका वादा करती हूँ।बस अपने क़ीमती वक़्त का किंचित मात्र हिस्सा मुझे देकर मार्गदर्शन ज़रूर कीजियेगा। आपकी ताउम्र आभारी रहूँगी।
आप सब से वस्तुतः यहाँ अनेक लाभों की मंशा से जुडी हूँ। एक तो, लेखन मेरी आत्मशुद्धि करके मुझे आत्मसंतुष्टि देता है। दूसरा, आप सबके बीच रहकर मुझ मूढ़मति में भी साहित्यिक ज्ञान का संचार हो जाएगा। और एक महत्वपूर्ण कारण कि मेरे मस्तिष्क में विचारों की त्सुनामी आती रहती है।व्यक्त न करूँ तो कहीं इन विचारों में मैं ही न बह जाऊँ, ये भी डर बना रहता है।
बस आप सभी के मार्गदर्शन से स्वयं का ज्ञानवर्धन कर पाऊँ यही अभिलाषा है और इसके लिए आपका सहयोग अपेक्षित है।
सधन्यवाद।
dj
Cakes Online
जवाब देंहटाएंOrder Cake Online