अगर आप एक नारी हैं तो बताने की आवश्यकता नहीं,कि ये कविता किस नारी को लक्ष्य करके लिखी है।
समझ आया न? तो चुपचाप पढ़ कर मौन धारण कर लीजिये और फिर से कोशिश में लग जाइये। लेकिन नीचे COMMENT जरूर कीजिये।बोलकर नहीं लिखकर।
'माँ जैसी' तुम सच में माँ-सी क्यों नहीं ?
तुम्हें हर दम कोशिश करके मैं,
सम्मान की धरा पर हूँ बिठाती,
पर फिर भी तुम मुझे रोज ही,
अर्श से फर्श पर क्यों ले आती।
तुम्हें खुश करने के हर प्रयास में,
मेरा मन यूँ मुरझाता है,
क्योंकि मेरा किया कोई काम,
तुम्हे कभी पसंद नहीं आता है।
माँ को तो सम्मान दिया ना,
उन पे चीखी-झल्लाई।
तुम्हारे सम्मुख तो सही होकर भी,
अपनी हर आवाज़ मैंने दबाई।
जो माँ के लिए किया न कभी,
वो सबकुछ तुम्हारे लिए मैं करती हूँ।
माँ के ख़याल से भी ज्यादा तो हरदम,
तुम्हारा ख़याल मैं रखती हूँ।
दुनिया तुम्हें कहे माँ जैसी,
पर मैं तो माँ ही कहती,
पर माँ सा वो प्यार वो ममता,
फिर भी तुमसे क्यूँ नहीं मिलती।
जो आता कभी न था वो सब,
तुम्हारे लिए ही सीखा है।
फिर भी तुम्हें तो हर बात में,
बस मीन मेख ही दिखता है।
माँ के सम्मुख तो सोचा कभी न,
जो चाहा वो बोल दिया।
जब भी, जो भी, आया मन में,
उनके सम्मुख खोल दिया।
तुमसे बात करूँ तो वो बातें,
तुमको क्यूँ नहीं भाती हैं।
बस इसीलिए तो तुम्हारे रहते हुए भी मुझे,
माँ की याद सताती है।
जब भी कभी सोचूँ मैं इस पर,
खुद को दोषी ठहराती हूँ।
अपनी और से तुम्हें खुश करने को,
फिर से तत्पर हो जाती हूँ।
पर वो सवाल जो दिल में है वो,
कभी नहीं मिट पाएगा।
मुझे बता दो ऐ!माँ जैसी!,
मेरी माँ बनने में,
आखिर तुम्हारा क्या जाएगा?
रुकिए....! कविता अभी ख़त्म नहीं हुई है। मैं तो पहले ही बता चुकी हूँ, लेखन मुझे नकारात्मकता से सकारात्मकता की और ले जाने वाली कुंजी है। तो ये कविता NEGATIVITY पर कैसे खत्म होगी भला ? आगे सुनिए.....
लेकिन मेरा अथक प्रयास,
यूँ तो व्यर्थ न जायेगा।
मेरे प्रयास के समक्ष ये सवाल,
ज्यादा नहीं टिक पायेगा।
एक दिन तुम्हीं कहोगी ऐ!माँ जैसी!
तुझ जैसी बेटी की माँ बनने में,
मुझे भी बड़ा आनन्द आएगा।
(स्वरचित) dj कॉपीराईट © 1999 – 2015 Google
इस ब्लॉग के अंतर्गत लिखित/प्रकाशित सभी सामग्रियों के सर्वाधिकार सुरक्षित हैं। किसी भी लेख/कविता को कहीं और प्रयोग करने के लिए लेखक की अनुमति आवश्यक है। आप लेखक के नाम का प्रयोग किये बिना इसे कहीं भी प्रकाशित नहीं कर सकते। dj कॉपीराईट © 1999 – 2015 Google
मेरे द्वारा इस ब्लॉग पर लिखित/प्रकाशित सभी सामग्री मेरी कल्पना पर आधारित है। आसपास के वातावरण और घटनाओं से प्रेरणा लेकर लिखी गई हैं। इनका किसी अन्य से साम्य एक संयोग मात्र ही हो सकता है।
समझ आया न? तो चुपचाप पढ़ कर मौन धारण कर लीजिये और फिर से कोशिश में लग जाइये। लेकिन नीचे COMMENT जरूर कीजिये।बोलकर नहीं लिखकर।
'माँ जैसी' तुम सच में माँ-सी क्यों नहीं ?
तुम्हें हर दम कोशिश करके मैं,
सम्मान की धरा पर हूँ बिठाती,
पर फिर भी तुम मुझे रोज ही,
अर्श से फर्श पर क्यों ले आती।
तुम्हें खुश करने के हर प्रयास में,
मेरा मन यूँ मुरझाता है,
क्योंकि मेरा किया कोई काम,
तुम्हे कभी पसंद नहीं आता है।
माँ को तो सम्मान दिया ना,
उन पे चीखी-झल्लाई।
तुम्हारे सम्मुख तो सही होकर भी,
अपनी हर आवाज़ मैंने दबाई।
जो माँ के लिए किया न कभी,
वो सबकुछ तुम्हारे लिए मैं करती हूँ।
माँ के ख़याल से भी ज्यादा तो हरदम,
तुम्हारा ख़याल मैं रखती हूँ।
दुनिया तुम्हें कहे माँ जैसी,
पर मैं तो माँ ही कहती,
पर माँ सा वो प्यार वो ममता,
फिर भी तुमसे क्यूँ नहीं मिलती।
जो आता कभी न था वो सब,
तुम्हारे लिए ही सीखा है।
फिर भी तुम्हें तो हर बात में,
बस मीन मेख ही दिखता है।
माँ के सम्मुख तो सोचा कभी न,
जो चाहा वो बोल दिया।
जब भी, जो भी, आया मन में,
उनके सम्मुख खोल दिया।
तुमसे बात करूँ तो वो बातें,
तुमको क्यूँ नहीं भाती हैं।
बस इसीलिए तो तुम्हारे रहते हुए भी मुझे,
माँ की याद सताती है।
जब भी कभी सोचूँ मैं इस पर,
खुद को दोषी ठहराती हूँ।
अपनी और से तुम्हें खुश करने को,
फिर से तत्पर हो जाती हूँ।
पर वो सवाल जो दिल में है वो,
कभी नहीं मिट पाएगा।
मुझे बता दो ऐ!माँ जैसी!,
मेरी माँ बनने में,
आखिर तुम्हारा क्या जाएगा?
रुकिए....! कविता अभी ख़त्म नहीं हुई है। मैं तो पहले ही बता चुकी हूँ, लेखन मुझे नकारात्मकता से सकारात्मकता की और ले जाने वाली कुंजी है। तो ये कविता NEGATIVITY पर कैसे खत्म होगी भला ? आगे सुनिए.....
लेकिन मेरा अथक प्रयास,
यूँ तो व्यर्थ न जायेगा।
मेरे प्रयास के समक्ष ये सवाल,
ज्यादा नहीं टिक पायेगा।
एक दिन तुम्हीं कहोगी ऐ!माँ जैसी!
तुझ जैसी बेटी की माँ बनने में,
मुझे भी बड़ा आनन्द आएगा।
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तो प्रयास जारी रखें और इस पर टिप्पणी का भी एक प्रयास कर ही लीजिए कविता आपकी टिप्पणियों का बेसब्री से इंतज़ार कर रही है। और मेरे लेखनी ब्लॉग पर आज लिखी कविता भी आपकी प्रतीक्षा में है पढ़ने के लिए बस क्लिक करें http://lekhaniblog.blogspot.in/