शनिवार, 21 मार्च 2015

नवरात्र: देवी का प्रथम स्वरूप शैलपुत्री

व्रत त्यौहार में आज नवरात्र घटस्थापना के दिन देवी के विभिन्न रूपों में 
से प्रथम रूप शैलपुत्री के बारे में जानकारी- (विकिपीडिया से साभार )

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रहमचारिणी

तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम


पंचमं स्क्न्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति


सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम


नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः।

देवी दुर्गा के नौ रूप होते हैं। 
दुर्गाजी पहले स्वरूप में 'शैलपुत्री' के नाम से जानी जाती हैं।ये ही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम 'शैलपुत्री' पड़ा। नवरात्र-पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है।
शैलपुत्री : मां दुर्गा का पहला रूप देवी शैलपुत्री
नवरात्रि में दुर्गा पूजा के अवसर पर बहुत ही विधि-विधान से माता दुर्गा के नौ रूपों की पूजा-उपासना की जाती है। आइए जानते हैं प्रथम देवी शैलपुत्री के बारे में :-
मां दुर्गा को सर्वप्रथम शैलपुत्री के रूप में पूजा जाता है। हिमालय के वहां पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण उनका नामकरण हुआ शैलपुत्री। इनका वाहन वृषभ है, इसलिए यह देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं। इस देवी ने दाएं हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है। यही देवी प्रथम दुर्गा हैं। यही सती के नाम से भी जानी जाती हैं। उनकी एक मार्मिक कहानी है।
एक बार जब प्रजापति ने यज्ञ किया तो इसमें सारे देवताओं को निमंत्रित किया, भगवान शंकर को नहीं। सती यज्ञ में जाने के लिए विकल हो उठीं। शंकरजी ने कहा कि सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया है, उन्हें नहीं। ऐसे में वहां जाना उचित नहीं है।
सती का प्रबल आग्रह देखकर शंकरजी ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। सती जब घर पहुंचीं तो सिर्फ मां ने ही उन्हें स्नेह दिया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव थे। भगवान शंकर के प्रति भी तिरस्कार का भाव है। दक्ष ने भी उनके प्रति अपमानजनक वचन कहे। इससे सती को क्लेश पहुंचा। वे अपने पति का यह अपमान न सह सकीं और योगाग्नि द्वारा अपने को जलाकर भस्म कर लिया।
इस दारुण दुख से व्यथित होकर शंकर भगवान ने उस यज्ञ का विध्वंस करा दिया। यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं। शैलपुत्री का विवाह भी भगवान शंकर से हुआ। शैलपुत्री शिवजी की अर्द्धांगिनी बनीं। इनका महत्व और शक्ति अनंत है। पार्वती और हेमवती भी इसी देवी के अन्य नाम हैं।
वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्‌। वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्‌ ॥ 
विकिपीडिया से साभार 

मेरी बात

सभी पाठकों को नमस्कार,
सभी को नवरात्र, गुड़ी पड़वा एवं नव संवत्सर 2072 की हार्दिक शुभकामनाएँ। 
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी,

तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकंम्, 

पंचमं स्क्न्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च,

सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्। 

नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः।


आज से नवरात्र प्रारम्भ हो गए हैं आज घटस्थापना का दिवस है।

नौ दिन तक देवी की श्रद्धा से पूजा उपासना होगी।उसके बाद 


देवी के जवारे ठण्डे (विसर्जित) कर देने के बाद हम भी ठण्डे हो


जाएँगे। उसी के अन्य सृजन, नारी की स्थिति के बारे में।


क्या कहा??????? पहले से कई बेहतर स्थिति में है आज की 


नारी????????तो इस बारे में क्या ख्याल है?

हम  देवी की उपासना करते हैं, पूजा करते है, कन्या भोज कराते है। 
और 
बड़ी आसानी से कन्या भ्रूण हत्या करने/देखने का दंश भी झेल लेते हैं। 

देवी को श्रद्धा से भोग अर्पण करते हैं। 
और 
किसी का भोग कर उसे निर्भया,दामिनी बना देते हैं। 

आदर से देवी की स्थापना कर उसे घर में स्थान देते हैं। 
और 
उसके ही अन्य सृजन को शराब के  नशे में मार पीटकर घर के बाहर कर देते हैं।   

ये नारी की पुरानी नहीं आज की स्थिति है। आज का यथार्थ। कोई ज्यादा बदलाव नहीं आया है आज भी कुछ समस्याएँ वैसी ही बनी हुईं हैं जैसी सालों पुरानी थी। जबकि हमारे शास्त्रों में भी कहा गया है - 
"यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:" 
नारी को देवी का स्थान देने के पक्ष में बिलकुल नहीं हूँ मैं। बस उन्हें वो सम्मान मिले,जिसकी वो अधिकारी हैं। आज भी नारियाँ उपेक्षा, अपमान, तिरस्कार की लगातार शिकार होती हैं। कृपया एक बार जरूर सोचें भारतीय संस्कृतियुक्त वो समाज जिसके शास्त्रों में नारी को पूजनीय स्थान दिया गया है,उसे आज उसी समाज में पर्याप्त सम्मान तक प्राप्त नहीं है। आज भी कई जगह उसे भाँति भाँति से तिरस्कृत किया जाता है। शायद आप कहेंगे कि हमारी सोच तो नारियों के प्रति अच्छी है। हम तो उनके साथ इस तरीके का व्यवहार कभी नहीं करते। अगर आप इन गणमान्य लोगों की श्रेणी में आते हैं तो आपको बधाई। सहृदय नमन कि आप आज भी इंसानों की श्रेणी में आते हैं।लेकिन कुछ इंसान रूपी जानवर आज भी इसी समाज का हिस्सा हैं। जिसमें हम रहते हैं। बस आप सभी से एक ही विनती है, नववर्ष एवं देवी घटस्थापना के पावन दिन पर एक ही प्रण लें, यदि आपके आसपास कहीं भी अगर किसी भी स्त्री/बालिका/कन्या /किशोरी  पर अत्याचार होते दिखे, उससे दुर्व्यवहार होते दिखे तो उसकी मदद अवश्य करें और हो सके तो उसे रोकने का भी प्रयास अवश्य करें। उस कृत्य के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाएँ।कृपया ये न सोचें कि  मेरे सोचने से क्या  होगा। आपकी सिर्फ किसी एक को भी की गई मदद उस एक का भविष्य या जीवन तक बचा सकते हैं। और फिर स्त्री तो आखिर जननी होती है। एक स्त्री का जीवन बचाकर उससे जुड़े प्रत्येक का जीवन बचाया जा सकता है। 

आज से नारी का, नारी को, नारी के लिए ब्लॉग पर इसी से सम्बंधित एक नया लेबल शुरू करने जा रही हूँ। 'सत्यमेव जयते'।अगर आपने कभी भी किसी नारी की,किसी भी प्रकार से सहायता की हो, कुछ ऐसा किया हो, जिससे उसका जीवन प्रकाशित हुआ हो तो आप अपने उस सराहनीय कार्य के बारे में मुझे मेल करें आपके  कार्य के बारे में अपने ब्लॉग पर 'सत्यमेव जयते' लेबल के अंतर्गत प्रकाशित करना और पाठकों को बताना मेरा सौभाग्य होगा। 
धन्यवाद।
dj

एक लेखनी मेरी भी: माँ ने मुझे सँवारा है।

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